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मांझी में कांटे की टक्कर: नाराज मतदाता बने चुनाव का निर्णायक कारक, दोनों गठबंधन में मची हलचल

मांझी में कांटे की टक्कर: नाराज मतदाता बने चुनाव का निर्णायक कारक, दोनों गठबंधन में मची हलचल

सारण (बिहार) संवाददाता मनोज कुमार सिंह: विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान की समाप्ति के बाद मांझी विधानसभा क्षेत्र में अब मतदाता गोलबंदी की प्रक्रिया तेज हो गई है। क्षेत्र के दोनों प्रमुख गठबंधनों — महागठबंधन और एनडीए — के प्रत्याशियों के पक्ष में समर्थक खुलकर मैदान में उतर आए हैं। स्थानीय राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस बार मांझी का मुकाबला बेहद रोमांचक और आमने-सामने का होने जा रहा है।
राजनीति के जानकारों से बातचीत के बाद यह बात सामने आई है कि निवर्तमान विधायक और महागठबंधन के प्रत्याशी इस बार गंभीर मुकाबले में फंस गए हैं। उन्हें एनडीए गठबंधन के प्रत्याशी की ओर से कड़ी चुनौती मिल रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगले 24 घंटे विधायक के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं। सूत्रों के अनुसार, विधायक के पारंपरिक मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग असंतुष्ट है, जो अब एनडीए खेमे की ओर झुक गया है।
उधर, राजद और कांग्रेस जैसे घटक दलों से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने के कारण महागठबंधन खेमे में बेचैनी बढ़ गई है। नाराज मतदाताओं को वापस लाने के लिए विधायक समर्थक हरसंभव प्रयास में जुटे हैं। हालांकि, समर्थक अब भी बड़े अंतर से जीत का दावा कर रहे हैं।
दूसरी ओर, एनडीए समर्थित जदयू प्रत्याशी के खेमे में उत्साह चरम पर है। एनडीए की रणनीति सवर्ण और अतिपिछड़े वर्गों के पारंपरिक मतों के साथ-साथ असंतुष्ट मतदाताओं को जोड़ने की रही है। जदयू कार्यकर्ता दावा कर रहे हैं कि इस बार मांझी की सीट “हर हाल में” एनडीए के खाते में जाएगी।
इसी बीच, जन सुराज के वाई.बी. गिरी, आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रत्याशी नसीम अहमद और निर्दलीय राणा प्रताप सिंह उर्फ डब्ल्यू सिंह भी असंतुष्ट मतदाताओं को आकर्षित करने में जुटे हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यदि इन प्रत्याशियों को उल्लेखनीय वोट मिले, तो मुकाबला और अधिक दिलचस्प हो सकता है।
इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जोड़ी को विकास का प्रतीक बताते हुए एनडीए ने प्रचार किया, वहीं महागठबंधन ने तेजस्वी यादव के रोजगार के वादे को मुख्य मुद्दा बनाया। प्रचार के दौरान पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के कार्यकाल की चर्चा भी दोनों ओर से बार-बार उठी।
प्रचार खत्म होते ही अब मांझी की गलियों और चौक-चौराहों पर सिर्फ एक ही चर्चा है — “कौन बनेगा मांझी का सरताज?” इसका जवाब 14 नवंबर को मतगणना के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा।
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